दुर्लभ जादुई घड़ी

दुर्लभ घड़ी


वो घड़ी दुर्लभ ही थी। मेरे पापा की कलाई पे सजी रहती थी। उसका डायल काले रंग का था जिस पर दोनों सुनहरी सुइयां भागती थीं।
वो घड़ी हम सब भाई बहनों को सुबह उठाती थी, रात को सुलाती थी, समय से खाना खिलाती थी, किस समय पढ़ना और कब खेलना है ये सारे काम भी वोही करवाती थी, आखिर वो हमारे पापा की घड़ी थी ना।
उसका जादू हम पर ही नहीं हॉस्टल में रहने वाले बच्चों पर भी चलता था (हमारा घर स्कूल के हॉस्टल के साथ ही तो था) और स्कूल पर भी।
कब कौन सा period लगेगा वो ये भी तो सुझाती थी। स्कूल की घंटी को भी वो याद दिलाती थी, चलो अब बज जाओ period ख़तम हो गया है।
पर सबसे अच्छा काम वो करती जब recess होती या फिर छुट्टी, उसका इशारा पा कर घंटी थिरक थिरक कर नाचती और शोर मचाती, चलो बच्चों स्कूल ख़तम और मौज मस्ती शुरू। ऐसी जादुई दुर्लभ घड़ी थी वो।
पापा उससे बहुत प्यार करते थे, पर रोज़ एक बार उसका कान उमेठा जाता, फिर वो अगले 24 घंटो के लिए मुस्तैदी से तैयार हो जाती अपनी ड्यूटी निभाने को। आपको तो मालूम ही है, बेचारी का एक ही कान था। उसका सबसे पक्का दोस्त था वो काला चमड़े का पट्टा, हमेशा साथ रहता उसके, मरते दम तक साथ निभाया दोनो ने।
जानते हैं वो पैदा कहां हुई थी, Switzerland में, उसका नाम था GATA, सांवली सलोनी, दुबली पतली छरहरी एक दम किसी नवयौवना सी थी वो।
फिर एक दिन आया, मैं 9 वीं कक्षा में था, बोर्ड के इम्तहान थे और हमे दूर के स्कूल में परीक्षा के लिए जाना था।
जाने से पहले पापा ने मुझे बुलाया और बड़े प्यार से उसको मुझे सौंप दिया।
उस दिन से वो जादुई घड़ी मेरी हो गई। बहुत वर्षों तक वो मेरे साथ खुशी खुशी रहती रही और अपना काम करती रही।
पर जैसे हर जीवन का अंत होता है, उसका भी तो होना ही था।
कई बार वो बीमार पड़ी, पर हर बार कोई न कोई उसे बचा कर नवजीवन दे ही देता।
पर कब तक, फिर एक दिन उसका अंतिम समय आ ही गया। वो बहुत बीमार थी, हर कोशिश बेकार हुई, उसके लिए कोई अंग प्रत्यारोपण नहीं मिला।
आखिर उसका स्थान एक नई चमकती ऑटोमैटिक Titan ने ले लिया। मैंने बड़े भारी मन से अपनी अलमारी के एक दराज में उसको अंतिम स्थान दे दिया।
आज भी उस दुर्लभ जादुई घड़ी की समाधि वहीं पर है, और उसके साथ ही उसके बाद की अनेकों घड़ियां, क्यूंकि अब उनका स्थान लेने मोबाइल जो आ चुका है।
फिर भी बचपन की वो जादुई घड़ी आज भी दिल के कोने में जिंदा है, अपनी धड़कनों में उसकी मधुर टिक टिक सुनाई देती है।
आज भी वो घड़ी पापा का आशीर्वाद और प्रेम का जादू मुझ पर बिखेर रही है।

आभार - नवीन पहल - २२.०२.२०२२ 🙏👍🌹😀

# वार्षिक कहानी


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5 Comments

Arshi khan

03-Mar-2022 03:37 PM

👌👌👌

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Inayat

03-Mar-2022 01:37 PM

Nice story

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Arman

02-Mar-2022 10:22 AM

बहुत खूब

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